कश्मकश – Dilemma

कश्मकश

ये कैसी कश्मकश ये कैसी जददोजहद ,
बचपन था तो बड़े हो जाने की होड़ ,
बड़े हुए तो बचपन को पीछे छोड़ आने का अफ़सोस
कल को पाने की होड़ थी , कल के छूट जाने का अफसोस था
इस आपाधापी में कब आज फिसल गया हाथों से ये पता ही नहीं चला

प्रीति मिश्र तिवारी
७-७-२०१५

July 7 2015

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