माँ – Mother

“माँ “

जब खोली  थीं आँखें अपनी , पाया था अपने को निश्छल गोदी में,
तब से देख रही हूँ  इक चेहरा , कुछ जाना कुछ अंजाना सा ,
जिसने अमृत घूँट पिलाकर मुझमें जीवन का संचार किया ,
जीवन  के हर सुख में  दुःख  में , जिसने हर पल मेरा साथ दिया ,
कभी डांटा कभी डपटा तो कभी जी भर कर दुलार दिया ,
नहीं समझ सकी थी तब मैं , उस डाँट में छिपी अपनत्व की भावना
महसूस नहीं कर सकी थी की मैं अंश हूँ उस अस्तित्व का
जो कभी लगती मुझे एक पहेली , तो कभी अपनी प्यारी सहेली ,
आज बानी जो अंतः प्रेरणा मेरी “मधु” से भरी वो माँ  है मेरी,
जाने जिसमें है कितनी गहराई , जितनी  बार समझना चाही ,
हर बार एक नयी बात है पायी , आज चाहती हूँ बस इतना ही कहना ,
“माँ ” शब्द  में इतनी करुणा, ममता और अनुराग भरा।
“माँ ” शब्द में ही सारे जीवन का सार भरा

— प्रीती मिश्र तिवारी (१८/अप्रैल/१९९६)

April 18 1996

(मेरी प्यारी माँ को समर्पित, जिसने जीवन दो को दिया, लेकिन अपने प्यार की छाँवों में सिंचित और पल्लवित बहुत से नन्हों को किया )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *